Hum Se Shayad Hi Kabhi Uske Shanasaye Ho - Urdu & Hindi Ghazal
ہم سے شاید ہی کبھی اس کی شناسائی ہو
دل یہ چاہے ہے کہ شہرت ہو نہ رسوائی ہو
وہ تھکن ہے کہ بدن ریت کی دیوار سا ہے
دشمن جاں ہے وہ پچھوا ہو کہ پروائی ہو
ہم وہاں کیا نگہ شوق کو شرمندہ کریں
شہر کا شہر جہاں اس کا تماشائی ہو
درد کیسا جو ڈبوئے نہ بہا لے جائے
کیا ندی جس میں روانی ہو نہ گہرائی ہو
کچھ تو ہو جو تجھے ممتاز کرے اوروں سے
جان لینے کا ہنر ہو کہ مسیحائی ہو
تم سمجھتے ہو جسے سنگ ملامت عرفانؔ
کیا خبر وہ بھی کوئی رسم پزیرائی ہو
हम शायद ही कभी उसे जान पाते हैं
दिल न तो प्रसिद्धि चाहता है और न ही अपमान
वह थक गया है कि शरीर रेत की दीवार की तरह है
दुश्मन मर चुका है, चाहे वह पीछे हो या लापरवाह हो
क्या हम वहां के जुनून को शर्मसार करें?
जिस शहर में उसके दर्शक हैं
वो कौन सा दर्द है जो डूब नहीं सकता?
क्या कोई ऐसी धारा है जिसमें कोई प्रवाह या गहराई नहीं है?
कुछ ऐसा होना चाहिए जो आपको दूसरों से अलग करे
ईसाई बनने के लिए जीवन जीने की प्रतिभा रखें
तिरस्कार का पत्थर तुम समझते हो इरफ़ान
क्या खबर है वो भी कोई रस्म है?